सर्दी में स्वास्थ्य समस्या

गिरते तापमान की वजह से ठंड की धमक का संदेश सुनाई दे रहा है। अभी तापमान में काफी लचीलापन बना हुआ है, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। सर्दी के दिनों में इन बीमारियों की आशंका होती है। शीत जनित कुछ रोगों के लक्षण और बचाव के उपाय-

हाइपोथाइलमसः
चिकित्सकों के अनुसार जब ठंड के कारण शरीर का तापमान ध्ीरे-ध्ीरे कम होने लगे, तो इसे हाइपोथाइलमस कहते हैं। सामान्यतः मनुष्य के शरीर का तापमान 37 डिग्री होता है। अगर शरीर का तापमान 35 डिग्री से कम हो जाए, तो मरीज की जान भी जा सकती है। यह रोग शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के कम होने की स्थिति में खतरनाक हो जाता है।
कारणः
यह बीमारी शरीर का तापमान कम होने के कारण होती है। बहुत ज्यादा समय तक ठंड में रहने पर यह बीमारी हो सकती है।
बचावः ठंड से बचें और गर्म खाना व तरल पदार्थ लें। आइसक्रीम जैसे ठंडे पदार्थों के सेवन से बचें। खाने पीने का विशेष ध्यान रखें, ताकि रोग प्रतिरोध्क क्षमता प्रभावित न हो।

आर्थेराइटिसः
चिकित्सक बताते हैं कि ठंड बढ़ने के साथ ही बुजुर्गाें को जोड़ों का दर्द सताने लगता है। जोड़ों में साइकोवियल फ्रलूड होता है, जो हड्डियों के बीच ग्रीस का काम करता है, लेकिन बढ़ती उम्र के कारण फ्लूड का बनना कम हो जाता है, जिससे जोड़ों का दर्द बढ़ जाता है। हवा का दबाव बढ़ने से भी रियूमेटाॅयड आर्थराइटिस का दर्द बढ़ जाता है।
कारणः
आर्थराइटिस की बीमारी वायरल, इन्फेक्शन और हृदय संबंधी समस्याओं के कारण होती है। युवाओं में यह बीमारी बदलते जीवनशैली के कारण हो रही है, वहीं बुजुर्गांे में इसका असर बढ़ती उम्र के कारण होता है।
बचावः
शरीर को हमेशा गर्म कपड़ों से ढक कर रखें। घर का तापमान 70-75 डिग्री फारेनहाइट के बीच रखें। सूर्योदय के बाद ही घर से निकलें। व्यायाम करें तथा ज्यादा देर तक बैठे न रहें। प्रोटीनयुक्त भोजन अधिक मात्रा में लें। शराब, धू्रमपान आदि से बचें।

हृदय संबंधी रोगः
ठंड के मौसम में हृदय रोगियों में एंजाइना या हार्ट अटैक की संभावना 30 फीसदी बढ़ जाती है। तापमान में गिरावट के साथ ही क्रोनरी हार्ट डिजीज (सीएचडी) की आशंका बढ़ जाती है। हृदय रोग विशेषज्ञों का मानना है कि सर्दी का असर बढ़ने पर हार्ट पंप की गति अकस्मात कम हो जाती है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। चिकित्सकों का मानना है कि सीएचडी को समझ पाना बहुत मुश्किल होता है। इसलिए यह बीमारी बेहद खतरनाक होती है।
बचावः
शुरू होने से पहले ब्लड प्रेशर चेक कराएं।
रक्तचाप बढ़ रहा हो, तो जीवनशैली में बदलाव लाएं। ठंड के दौरान शरीर को पूरी तरह से ढक कर रखें। टहलने जाने से पहले पानी पिएं। गर्म पदार्थों का सेवन न करें।

त्वचा संबंधी बीमारियांः
चिकित्सकों के अनुसार सर्दी में तेज हवा और ठंड का असर हमारी त्वचा पर भी पड़ता है। इस दौरान मुंह लाल हो जाता है, एड़ियां फट जाती हैं और पैर में छाले पड़ जाते हैं। नमी के अभाव में त्वचा रूखी हो जाती है। इसे फ्रलसबाइट कहते हैं। इससे बचाव के लिए मुंह को ढक कर रखें तथा घर से बाहर निकलने से पहले शरीर को पूरी तरह ढक लें।

अन्य बीमारियांः
ठंड में वायरल, निमोनिया, किडनी, अस्थमा तथा एंफ्रलुएंजा जैसी बीमारियां बढ़ जाती हैं। इनका सबसे ज्यादा असर बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि दिन में तेज धूप और शाम तक मौसम सर्द हो जाने के कारण सर्दी, जुकाम, खांसी, बुखार जैसी समस्याएं पैदा होती हैं।

साथ ही मौसम में नमी के कारण धुधं के साथ प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है, जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है, जिसके कारण अस्थमा बढ़ जाता है।

बचाव के लिए बरतें सावधनियांः
दमा के मरीज तथा वृद्ध धुंध छंट जाने के बाद ही घर से बाहर निकलें। गला, हाथ पैर व सिर के ऊपरी हिस्से को ठंड से बचाएं। बच्चों व बुजुर्गों का खास ध्यान रखें।
सुबह हल्के गुनगुने पानी से नहाएं। अस्थमा के मरीज दवा व इन्हेलर नियमित रूप से लें, खूब पानी पीएं, गला व नाक बंद होने पर गर्म पानी से भाप लें।

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