साहब लापरवाही की जवाबदेही तय की जानी चाहिए . . .

25 दिसम्बर 2018 को प्रदेश सरकार ने अटल आयुष्मान उत्तराखण्ड योजना बडे़ जोर-शोर से लॉच की। योजना के तहत प्रदेश में प्रत्यके परिवार को 5 लाख रुपये का प्रतिवर्ष निःशुल्क स्वास्थ्य सुरक्षा का देने का वादा कर प्रदेश सरकार अपनी पीठ खुद ही ठोक कर खूब वाह-वाही लुट रही है। लेकिन अफसोस प्रदेश में लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर सरकार कभी गम्भीर होती दिखाई नहीं देती। प्रदेश में आये दिन स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही सामने आ ही जाती है। कभी सड़क पर प्रसव, कभी अस्पताल के गेट पर प्रसव, तो कभी मोमबत्ती व मोबाइल की रोशनी में प्रसव। जी हां यह हाल है प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल दून का। ऐसे में समझा जा सकता है प्रदेश के पहाड़ी जिलों में अस्तपाल की स्थिति क्या होगी।

बड़ा सवाल यही है कि कि प्रदेश की राजधानी के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में बिजली बंद होने कारण डॉक्टरों ने मोमबत्ती और मोबाइल की रोशनी में एक नहीं दो नहीं कुल नौ डिलीवरी करवा दी। अब इसे प्रसव में बरती गई लापरवाही कहें या फिर डॉक्टरों को शाबासी दें। बस यहां राहत की बात यह है कि कम रोशनी के बावजूद सभी डिलीवरी सफल रहीं किस प्रकार की अनहोनी नहीं हुई।

वहीं दूसरी झकझोरने वाली खबर कर्णप्रयाग की है जहां 24 जनवरी को प्रसूता कृष्णा को रात्रि नौ बजे प्रसव पीड़ा होने पर रा. सामु. स्वा. केन्द्र कर्णप्रयाग लाया गया। अस्पताल प्रशासन ने जांच के बाद प्रसूता को यह कह कर घर भेज दिया कि सब सामान्य है डिलीवरी 5 फरवरी 2019 को है। ठीक अगले दिन 25 जनवरी को पुनः प्रसव पीड़ा के कारण कृष्णा अस्पताल गई, जहां डॉक्टरी जांच में पता चला कि प्रसूता के पेट में बच्चा दो दिन पहले ही मर गया है। आनन-फानन में आपरेशन तो किया लेकिन अफसोस प्रसूता दुबारा होश में न आ सकी।

इस प्रकरण पर प्रदेश के मुखिया से लेकर मंत्री, संतरी, सब आज खामोश, आखिर क्यों? जबकि प्रदेश के मुखिया मोबाइल रोशनी में कि गई डिलीवरी को लापरवाही न मान कर मीडिया के सामने डॉक्टरों की पीठ थपथपा रहे थे लेकिन अफसोस कर्णप्रयाग अस्पताल की लापरवाही के मामले में सीएम खामोश क्यों? यहां किस डॉक्टर की पीठ थपथपायेंगे सीएम साहब।

साहब याद कीजिए वो दिन जब मुख्यमंत्री बनने की खुशी में प्रसूताओं की पीड़ा को लेकर आपकी बेटियां का दर्द कैमर के सामने इस उम्मीद से झलका था कि बस अब और नहीं, क्योंकि बेटी को उम्मीद थी अपने पापा से कि पापा सब ठीक कर देंगे। साहब ये दर्द हर बेटी का है लेकिन अफसोस साहब आप अपनी ही बेटी का दर्द बहुत जल्दी ही भूल गये।

यहां मोमबत्ती में प्रसव करवाने वाले डॉक्टर शाबासी के पात्र हो सकते है क्योंकि यह कोई अनहोनी घटना नहीं हुई। लेकिन लचर सिस्टम का दोषी कौन? जिनकी लापरवाही के कारण मोमबत्ती की रोशनी में प्रसव करवाना डॉक्टर की मजबूरी बनी? आखिर कौन जिम्मेदारी तय करेगा इस लापरवाही की? सीएम साहब यहां जवाबदेही तय की जानी चाहिए ताकि भविष्य में इस प्रकार की किसी भी (दून अस्पताल व कर्णप्रयाग जैसी) घटना से किसी बेटी/ बहन को दो चार न होना पड़े।

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