ऋषिपर्णा: कैसे सच होगा सपना

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रिस्पना से ऋषिपर्णा की ओर सरकार का सफर पूरे जोर शोर से रविवार को शुरू हो गया। प्रदेश के मुखिया का दून की प्रमुख नदी रिस्पना को पुनर्जीवित करने का संकल्प सराहनीय है, जिसके तहतः मुख्यमंत्री ने प्रदेश वासियों से रिस्पना को पुनर्जीवित कर ऋषिपर्णा (रिस्पना का नाम) मंे बदलने की अपील की। किन्तु बड़ा सवाल यह कि क्या आज की रिस्पना की दशा को देखते हुए उसे ऋषिपर्णा में बदला जा सकता है। आज जो लोग रिस्पना को बचाने की बात करते है स्वयं रिस्पना नदी को बर्बाद करने के जिम्मेदार है। आज जिन नेताओं का राजनैतिक भविष्य रिस्पना से जुड़ा है, वही नेता ऋषिपर्णा की राह में रोड़ा बने हुये है। वो रोजाना इसका नाम तो ले रहे है लेकिन सिर्फ अपना राजनैतिक बजूद बचाने को न कि रिस्पना को बचाने के लिए। आज प्रदेश सरकार, दूून विश्वविद्यालय, स्वयं एमडीडीए व सरकार की आवासीय काॅलानी की इमारतें रिस्पना के सीने पर कब्जा कर उसे मुंह चिढ़ा रही है। कभी देहरादून की शान रही रिस्पना नदी अब कूड़े के डंपिंग जोन से ज्यादा कुछ नहीं रह गई। जिसमें आज सिर्फ और सिर्फ कब्जाधारियों का राज है। विषय सोचनी है कि जिस रिस्पना के दून को जीवन दिया बसने का सहारा दिया आज उसी को मानव ने अपने स्वार्थ के लिए निगल लिया। आज सरकार ने जो पहल की है वह सराहनीय है, अभियान बड़ा है। इसलिए मन में शंका पैदा करता है कि क्या सरकार की पहल धरातल पर रंग ला पायेगी। शुरूआत के तहत एक ही दिन में रिस्पना नदी (कैरवान से मोथरोवाला तक) के दोनों छोर पर 2.5 लाख पौधे लगाये जाने का लक्ष्य रखा गया था जो पूरा हुआ दिखाई नहीं पड़ा, क्योंकि रोपे गये पौधों की देखरेख हेतु सुरक्षा की कोई गारंटी कहीं नजर नहीं आई। पौधारोपण कार्यक्रम महज एक खानापूर्ति व मात्रा फोटो सेशन सा प्रतीत दिखाई दिखा। ऐसे में बड़ा सवाल सद्भावना वाटिका के भूमि चयन को लेकर भी है। जो पूरी तरह नदी का किनारा (रोखड़) है, जो कि बरसात में कभी भी बह सकता है। बहरहाल अपनी अन्तिम सांस गिन रही रिस्पना को अपने बचने की एक उम्मीद जगी है। अब देखना यह कि एक दिन के इस अभियान से कैसे रिस्पना का ऋषिपर्णा बनने का सपना सच होगा, देहरादून को उस दिन का बेसबरी से इंतजार है।

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