NCERT पाठ्यक्रम, समान शिक्षा की ओर एक कदम

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हमेशा अपनी कार्यशैली और बयानों को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहने वाले शिक्षा मंत्री अरविन्द पांडे एक बार फिर प्रदेश में चर्चा का विषय है बने हुए है, लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि अब तक मंत्री अपने ही विभाग के निशाने पर रहते थे, किन्तु इस बार उनके द्वारा लिया गया निर्णय कि अप्रैल से शुरू होने वाले नए शिक्षा सत्र में कक्षा एक से 12वीं तक एनसीईआरटी की किताबें ही चलेंगी, आम जनता की पक्ष में है इसलिए पूरा उत्तराखण्ड आज उनके साथ खड़ा है और उनके निर्णय की तारीफ कर रहा है। उत्तराखंड सरकार ने सरकारी और पब्लिक स्कूलों में निजी पब्लिशर्स की महंगी किताबों पर रोक लगा दी है और एनसीईआरटी की किताबों को लागू कर दिया है। मार्च अन्तिम सप्ताह शुरू होते ही बाजार में बड़े-बड़े निजी पब्लिशर्स की दुकानें सज जाती है, जो कि अप्रैल में नये शिक्षा-सत्र के शुरू आते ही स्कूलों की मिली भगत से अपना लूट खसोट का धन्धा चलते थे। उनके इस धन्धे में शिक्षा के ये तथाकथित मन्दिर भी खुलकर शामिल होते व मनमानी कीमत के साथ शिक्षा का व्यापार करते है।

यहां तक की एक साल में दो बार वार्षिक शुल्क अभिभावकों से वसूलते में संकोच नहीं करते थे। एनसीईआरटी की किताबों को लेकर लिया गया निर्णय प्रदेश के शिक्षा मंत्री का जन हित में लिया गया निर्णय है, जो कि उत्तराखण्ड राज्य में समान शिक्षा के लिया गया एक साहसिक व एक बड़ा निर्णय है।

वहीं दूसरी सरकार के एनसीईआरटी किताबों को लागू करने के निर्णय खिलाफ प्राइवेट स्कूलों में हड़ताल कर स्कूलों को बन्द कर दिया। जो कि साफ-साफ इशारा करता है कि प्राइवेट स्कूल को शिक्षा से ज्यादा सिर्फ और सिर्फ अपनी कमाई की चिन्ता है। पिछले सालों तक फीस बढ़ोत्तरी को लेकर प्रदेश में लगातार अभिभावक संघों द्वारा स्कूलों में प्रदर्शन व शिकायतें की जाती रही किन्तु स्कूलों प्रबन्धकों के कानों में जूं तक नहीं रेंगती थी।

वहीं वह बड़ा सवाल है कि जब सरकार का निर्णय आम जनता के पक्ष में गया तो स्कूल प्रबन्धक आखिर क्यों तिलमिला रहे है? सवाल नैनिहालों का है जो देश का भविष्य है फिर क्यों न सभी के पाल्यों को एक जैसी शिक्षा मिले। इसलिए अभिभावकों को आज सरकार के अडिग साथ रहना चाहिए। ताकि समान शिक्षा व्यवस्था लागू करने में उत्तराखण्ड राज्य देश के सामने एक मिशाल बन सके।

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