2050 तक दुनिया से खत्म हो जाएगा मलेरिया

UK Dinmaan

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तीन साल पहले एक रिपोर्ट तैयार करने की सलाह दी थी, जिसमें यह पता करना था कि विश्व से मलेरिया के उन्मूलन में कितनी लागत लगेगी और यह कितना संभव हो पाएगा। दुनिया के प्रमुख मलेरिया विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और अर्थशास्त्रियों ने यह निष्कर्ष निकाला की 2050 तक मलेरिया से दुनिया को मुक्ति दिलाई जा सकती है। मलेरिया उन्मूलन पर द लांसेट द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में इस महामारी से निपटने के विज्ञान और वित्तीय विश्लेषणों का अध्ययन किया गया है।

2000 के बाद से विश्व में मलेरिया के मामलों और मृत्युदर में क्रमशः 36 और 60 फीसद की गिरावट आई है। 2017 में 86 देशों में मलेरिया से 21.9 करोड़ मामले सामने आए और इसमें 4,35,000 लोगों की इस बीमारी की वजह से मौत हो गई थी। वहीं, अगर वर्ष 2000 के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि तब 26.2 करोड़ मामले सामने आए थे और 8,39,000 लोगों की मौत हुई थी। वर्तमान में दुनिया के आधे देश मलेरिया से मुक्त हो चुके हैं। हालांकि, प्रत्येक वर्ष मलेरिया के 20 करोड़ मामले सामने आते हैं। अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के 55 देशों में मलेरिया के मामले बढ़ रहे हैं।

विश्व के 29 देशों (27 अफ्रीका के) में मलेरिया के सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं। दुनिया में इससे होने वाली 85 फीसद मौतें इन्हीं देशों में होती हैं। वैश्विक मलेरिया के 36 फीसद मामले मात्र दो देशों नाइजीरिया और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो से सामने आते हैं। वहीं, दूसरी ओर 38 देश ऐसे हैं जहां 1000 की आबादी में 10 से भी कम मलेरिया के मामले सामने आते हैं और मलेरिया से होने वाली मौतों के केवल पांच प्रतिशत मामले ही इन देशों से होते हैं।

लांसेट की रिपोर्ट में 2030 और 2050 तक मलेरिया की स्थिति के बारे में विचार किया गया है। विश्लेषणों से संकेत मिलता है कि सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय रुझान 2050 तक विश्व में मलेरिया के उन्मूलन में विशिष्ट भूमिका निभाएंगे। 2050 तक दुनिया काफी हद तक मलेरिया से मुक्त हो जाएगी, लेकिन तब भी अफ्रीका के सेनेगल से मोजांबिक तक में मलेरिया की एक जिद्दी बेल्ट मौजूद रहेगी।
तीन तरीकों से आ सकती है कमी

रिपोर्ट में मलेरिया के मामलों में तेज गिरावट लाने के लिए तीन तरीके बताए गए हैं। सबसे पहले दुनिया को मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में सुधार करना चाहिए। दूसरा यह कि इस बीमारी को दूर करने में आने वाले जैविक अवरोध को रोकने के लिए नई तकनीक और उपकरणों को विकसित करना। तीसरा यह है कि मलेरिया फैलने वाले देशों को वित्तीय मदद उपलब्ध कराना।

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