‘जन्माष्टमी’ भगवान कृष्णा कु जन्मबार

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥

भगवान ब्वदन –
हे अर्जुन! ईं धरती मा जब-जब धर्मां कु नुकसान अर अधर्म बढ़ाणाळु, तब-तब मिथैं धर्म क रक्षा खूंणि आण प्वड़ाळु। साुधजनों क रक्षा अर दुष्टों का विनाश करणा खूंणि। धर्मक स्थापना करणा खूंणि मि बार-बार हर युग मा जन्म लींदु।

कृष्ण जन्माष्टमी भगवान कृष्णा कु जन्मबार दिन च। हमरि भारतीय संस्कृति क श्रीराम अर कृष्ण महानायक छन। भगवान विष्णु के दस अवतारू मा श्रीराम सातों त कृष्ण आठों अवतार छन। श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम छन त कृष्ण श्री योगेश्वर। श्रीकृष्ण एक आदर्श रूप मा हमरि समणि छन अर सब्बि दुःखों क बगद मा सदानि हमर समणि खड़ा रैदिंन। भगवान कृष्ण थैं लीलाधर अर लीलाओं क दैय्बता भि ब्वलै जांदा। भगवान कृष्ण थैं रास रसिया, लालीधर, देवकी नंदन जन्नि हजारों नाम से जणें जांदा।

श्रीकृष्ण जन्मकि कथा :
मान्यता च कि द्वापर क आखिर बगद मा भाद्रपद मैना मा कृष्ण पक्ष क अष्टमी दिन रात्रि 12 बजि श्रीकृष्णा कु जन्म ह्वै। शास्त्रों मा बत्यें जांदा कि वसुदेव अर देवकी ब्यों का बगद जबरि कंस अपणि बैंणी क विद्दैं करणु छायी तबरि एक आकाशवाणी ह्वै। आकाशवाणी ब्वाळ कि देवकी क आठों नौंनु कंस थैं मारळु। जैका बाद कंस न अपणि बैंणी देवकी अर वसुदेव थैं जेल मा बन्द कैरि द्यायी। सात नौंनियूं थैं मरणा का बाद जब श्रीकृष्ण क जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी मा रात्रि 12 बजि रोहिणी नक्षत्र मा ह्वै, त उन्नि भारी बरखा लग्गि ग्यायी अर चौछड़ि अन्धयरू ह्वैग्यायी। सब्बि सैनिकों थैं निन्द ऐग्यायी अर वसुदेव क बन्ध्यां हाथ खुट्टा खुल्ळि ग्यीं। भगवान क आदेश का बाद वसुदेव न कृष्ण थैं मथुरा जेळ बटि यमुना पार कैरिक गोकुळ मा बाबा नन्द का घार मा यशोदा माता का दगड़ मा सिव्वै (सुला) द्यायी अर ऊंकी नौंनी थैं अपड़ा दगड़ा मा लि ग्यीं। या बात सर्या गोळुल धाम मा फैळि ग्यीं कि नंदराय जी का घरौं मा नौंना कू जन्म ह्वै। गोकुळ मा कृष्णजन्म बार थैं नन्दोत्सव क रूप मा मन्यें जांद।

भगवान कृष्ण कीर्ति, लक्ष्मी, उदरता, ज्ञान, वैराग्य ऐश्वर्य गुणों क स्वामी छन। श्रीकृष्ण महान क दगड़ा दगड़ा विनम्र भि छायी तभि त उन्न राजसूय यज्ञ मा न्यूतेरू क खुट्टा धूणाकु, अर जूट्ठा पत्तळ उठाणा कु काम भि कायी।

महाभारत क लड़े मा भगवान कृष्णन सर्या श्रेय अर्जुन अर भीम थैं द्यायी जबकि सर्या लड़े मा नायक श्रीकृष्ण हि छायीं।

श्रीकृष्णा न भगवतगीता मा भगवत प्राप्ति खूंणि तीन उपाय बत्याँ छन। कर्मयोग, ज्ञानयोग अर भक्तियोग। जैमा भक्तियोग उथैं सबसे जादा मयाळु च। भगवान तक पौंचणा कु भक्तियोग सबसे आसान बाटु च। भगवान श्रीकृष्णा न ब्वाळ कि कळयुग मा जू मनखि अपड़ा ब्ये-बुबों क सेवा कराळु, वु मनखि मिथैं सबसे जादा मळायु ह्वाळु। कर्मयोग अर भक्तियोग द्विया एक हि छन। भक्ति सबसे आसान च, जैकि लेन सीधा आत्मा से जुड़ीईं च, अर जू आत्मा थैं बतन्दा कि परमात्मा अर आत्मा द्विया एक ही छन।

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