काफल औषधीय गुणों से भरपूर

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उत्तराखंड राज्य में कई प्राकृतिक औषधीय वनस्पतियां पाई जाती हैं जो हमारी सेहत के लिए बहुत ही अधिक फायदेमंद होती हैं। काफल इनमें एक है बहुत ही कम लोग खासकर की शहरों में बसने वाले लोगों को इस पहाड़ी फल के बारे में जानकारी नहीं है। काफल बहुत ही स्वादिष्ट और मीठा रसीला होता है ये फल। हिमालयी क्षेत्र में ही ये फल पैदा होता है। यह एक सदाबहार वृक्ष है। अंग्रेजी में इसे myrica esculenta कहा जाता है।

चैत के महीने में चिड़िया कहती है-काफल पाको मैं नि चाख्यो
कहा जाता है कि उस दिन के बाद से एक चिड़िया चैत के महीने में ‘काफल पाको मैं नि चाख्यो‘ कहती है, जिसका अर्थ है कि काफल पक गए, मैंने नहीं चखे..

काफल को समझते हैं देवताओं के योग्य
कहते हैं कि काफल को अपने ऊपर बेहद नाज भी है और वह खुद को देवताओं के खाने योग्य समझता है. कुमाऊंनी भाषा के एक लोक गीत में तो काफल अपना दर्द बयान करते हुए कहते हैं, ‘खाणा लायक इंद्र का, हम छियां भूलोक आई पणां’ इसका अर्थ है कि हम स्वर्ग लोक में इंद्र देवता के खाने योग्य थे और अब भू लोक में आ गए। छोटा गुठली युक्त बेरी जैसा ये फल गुच्छों में आता है और पकने पर बेहद लाल हो जाता है, तभी इसे खाया जाता है। वहीं ये पेड़ अनेक प्राकृतिक औषधीय गुणों से भरपूर है। इसकी छाल जहां विभिन्न औषधियों में प्रयोग होती है।

काफल फल के गुण और जानकारी-
दोस्तों आपको इस फल के विशेष गुणों के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए। काफल का फल जमीन से 4000 फीट से 6000 फीट की उंचाई में उगता है। ये फल उत्तराखंड के अलावा हिमाचल और नेपाल के कुछ हिस्सों में भी होता है। इस फल का स्वाद मीठा व खट्टा और कसैले होता है। इसलिए लोग इसकी चटनी को बनाकर भी खाते हैं।

काफल में पाए जाने वालें तत्व
इस फल में कई तरह के प्राकृतिक तत्व पाए जाते हैं। जैसे माइरिकेटिन, मैरिकिट्रिन और ग्लाइकोसाइड्स इसके अलावा इसकी पत्तियों में फ्लावेन -4-हाइड्रोक्सी-3 पाया जाता है।

दूर होती हैं ये सब बीमारियां
जी हां यदि आप काफल के पेड़ की छाल से निकलने वाले सार को दालचीनी और अदरक के साथ मिलाकर इसका सेवन करते हो तो आप पेचिश, बुखार, फेफड़ों की बीमारियां, अस्थमा और डायरिया आदि रोगों से आसानी से बच सकते हो। यही नहीं इसकी छाल को सूंघने से आंखों के रोग व सिर का दर्द आदि रोग ठीक हो सकते हैं।

एंटी-आॅक्सीडेंट
इस प्राकृतिक फल में मौजूद एंटी-आॅक्सीडेंट तत्व पेट से संबंधित रोगों को खत्म करते हैं। इसके फल से निकलने वाला रस शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है।

पेट के विकार
कब्ज हो या एसिडिटी आप काफल के फल को चूसें। इससे पेट संबंधी विकार आसानी से खत्म होते चले जाएगें।

मानसिक रोग
बहुत से लोगों को मानसिक चिंता व रोग होने लगा है। एैसे में काफल के इस फल को यदि आप खाते हैं तो धीरेकृधीरे आपको मानसिक तनाव खत्म हो जाएगा

गले की बीमारियां में
जैसा की हमने आपको बताया है कि इसकी छाल कितनी महत्वपूर्ण होती है। आप इसकी छाल से बने हुए चूर्ण जिसे काफलड़ी का चूर्ण कहा जाता है। उसमें शहद व अदरक का रस मिलाकर पीते हो तो इससे आपकी गले की बीमारियां व खांसी के अलावा सांस से संबंधित रोग भी आसानी से ठीक हो सकते हैं।

दांत और कान दर्द में
जिन लोगों को कान व दांत में दर्द होता हो तो वे काफल के पेड़ की छाल या इसके फूल से बने तेल की कुछ मात्रा कान में डालें। दांत दर्द में भी इस तेल की बूंदे रूई में डालकर इसे दांत दर्द वाले हिस्से पर रख दें। ध्यान रहे आप तेल को मुंह के अंदर ना जाने दें।

खास बात है कि इतनी उपयोगिता के बावजूद काफल बाहर के लोगों को खाने के लिए नहीं मिल पाता। दरअसल, काफल ज्यादा देर तक रखने पर खाने योग्य नहीं रहता। यही वजह है उत्तराखंड के अन्य फल जहां आसानी से दूसरे राज्यों में भेजे जाते हैं, वहीं काफल खाने के लिए देवभूमि ही आना पड़ता है।

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