गुणों की खान कड़वा नीम

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नीम स्वाद में जितना कड़वा होता है, वहीं गुणों में मीठा होता है। नीम का वृक्ष आसपास की हवा को तो साफ करता ही है, इसके पत्ते से लेकर टहनियां तक अपनी अलग-अलग खूबियों के कारण औषधि के रूप में खूब लोकप्रिय हैं।

नीम के पत्ते, फूल, फल, लकड़ी, छाल और जड़ कई बीमारियों में प्रभावशाली काम करते हैं। नीम कोढ़ भगन्दर, खुजली, घाव, नासूर, रक्त दोष, बवासीर, ज्वर, बुखार, नेत्र रोग, गले के रोग, मूत्र रोगों में संजीवनी का काम करता है।
आयुर्वेद के विद्वानों ने इसे खून की खराबी से होने वाली सभी बीमारियों में अत्यधिक उपयोगी बताया है।

संक्रमण से परेशान होते हैं तो
अगर आप अक्सर संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं तो नीम की कोंपलों को एक माह तक चबाना चाहिए। इस तु में पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और नये आते हैं, जो हल्के लाल रंग के होते हैं। यही कोंपल कहलाते हैं। इनकी दो-तीन पत्तियां ले लें और धोकर चबा जाएं। अधिक ज्यादा कड़बी महसूस करें तो अगले दिन से थोड़ी अजवाइन के साथ चबाएं। इससे पूरे साल संक्रमण की बीमारियों से सुरक्षित रहेंगे। इतना ही नहीं, इससे आपके ऊपर जहरीले कीड़े, सांप, बिच्छू के काटने पर भी उतना असर नहीं होगा।

अरुचि और बदहजमी हो तो
भूख न लगे तो कोमल पत्तियों को घी में भूनकर खाएं, भूख खुलकर आएगी और बदहजमी भी दूर हो जाएगी।

त्वचा के पुराने रोगों में
सूखे पत्तों का चूर्ण और आंवले का चूर्ण मिलाकर घी में मिला लें और त्वचा के उस हिस्से पर लगाएं, बहुत जल्द लाभ होगा।

घाव में कीड़े हों तो
पत्ते के साथ हींग पीसकर घाव पर लगाने से कीड़े मरते हैं और घाव भरता है।

पेट की बीमारियों में
नीम का रस शहद के साथ सेवन करने से लाभ होता है।

गहरा घाव हो तो आजमाएं
इसके पत्तों को पीस कर लुग्दी बनाकर गहरे घाव में रखने से घाव भरता है। इसमें निर्जीव मांस में शक्ति पैदा करने की क्षमता होती है, जो पुराने, गहरे, सड़े घावों को शीघ्र भरती है।

खसरा परेशान करे तो
खसरा होने पर दाने निकल आते हैं। तब इसकी पत्तियों के रस की पांच-सात बूंदें बच्चों को पिलाने से दाने आराम से निकल आते हैं और जल्दी ही सूख जाते हैं। खसरे के बाद नीम के पत्तों से उबाले पानी से बच्चों को नहाना हितकारी है।

नीम की सींक
भोजन करते समय भोजन का अंश दांतों में फंस जाय तो धातु से बनी चीज से न निकालें। नीम की सींक इसमें अधिक उपयोगी और सुरक्षित है।

दांत-मसूढ़ों की परेशानी
मसूढ़े बार-बार फूलें, मसूढ़ों से खून आये, ठंडा-गर्म लगे, सांस से बदबू आए तो नीम के पत्ते तोडक़र धोकर साफ कर खूब उबाल कर ठंडा कर सहन करने लायक पानी से कुल्ला करना हितकर है।

बुखार में
बुखार में इसके गीले या सूखे पत्ते जला कर धुंआ करना या इसकी छाल का काढ़ा बनाकर पीना लाभकारी है।

याद रखें यदि नीम के सेवन से कोई नुकसान नजर आये तो गाय का दूध या गाय का घी प्रयोग कर उस दुष्प्रभाव से मुक्त हो सकते हैं। अगर दूध या घी न मिले तो सेंधा नमक चूसना लाभकारी होता है।

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