देश का पहला मॉस गार्डन उत्तराखंड में तैयार

देहरादून। उत्तराखंड में नैनीताल जिले के खुर्पाताल में भारत का पहला ‘मॉस गार्डन’ तैयार किया गया है।
मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि इस गार्डन को उत्तराखंड वन विभाग की अनुसंधान सलाहकार समिति द्वारा सीएएमपीए योजना के तहत पिछले साल जुलाई में मंजूरी दी गई थी। देश के पहले मॉस गार्डन का उद्घाटन प्रसिद्ध जल संरक्षण कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह ने किया।

उत्तराखंड में नैनीताल मार्ग पर खुरपाताल के पास पहला ‘काई’ यानी मॉस गार्डन तैयार किया गया है। वन अनुसंधान केंद्र ज्योलिकोट, नैनीताल ने इसे तैयार किया है। यह मॉस, फर्न, लाइकन व अन्य वनस्पतियों के संरक्षण के लिहाज से महत्वपूर्ण गार्डन साबित होगा।

मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी के निर्देशन में तैयार किया गया है। उन्होंने मॉस की कई खूबियां गिनाते हुए समझाया कि हमारे पर्यावरण, जनजीवन के लिए यह मॉस कितना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि माॅस एक तरह की काई होती है, जो दीवारों, पेड़ों पर हरे-हरे रंग की दिखती है। मॉस का औषधि में बहुतायत में इस्तेमाल होता है। यह वायु प्रदूषण को रोकने में मदद करता है क्योंकि इससे फिल्टरेशन होता है।

नदियों के जल या अन्यत्र जल को फिल्टर करने में इसकी बड़ी भूमिका है। यह जल प्रदूषण को भी रोकता है।

वन क्षेत्राधिकारी ने कहा कि आज ही नहीं, विश्व युद्ध के समय में भी घायल सैनिकों के इलाज में इस मॉस का इस्तेमाल किया जाता था। बहुत सी चीजों में इस मॉस का इस्तेमाल है, लेकिन अभी तक इसके बारे में लोग कम जानते थे। इसीलिए मॉस प्रजातियों का संरक्षण करने के लिए मॉस गार्डन बनाया गया है। उन्होंने कहा कि मॉस एक तरह की काई होती है जो दीवारों और पेड़ों पर हरे रंग की दिखाई देती है। इसका औषधि में बहुतायत में इस्तेमाल होता है।

मॉस गार्डन, खुर्पाताल में मॉस की लगभग 30 विभिन्न प्रजातियां और कुछ अन्य ब्रायोफाइट प्रजातियां हैं। उन्होंने बताया कि यहां पाई जाने वाली दो प्रकार की मॉस प्रजातियां यानी ह्योफिला इन्वोल्टा (सीमेंट मॉस) और प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) की लाल सूची में शामिल ब्राचिथेलेशियम बुकानानी फिगर है।उन्होंने कहा कि यहां 1.2 किलोमीटर के क्षेत्र में ‘मॉस’ की विभिन्न प्रजातियां हैं और इनके सबंध में वैज्ञानिक जानकारी प्रदर्शित की गई है।

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